5 Essential Elements For Shodashi

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Tripura Sundari's sort is not only a visible illustration but a map to spiritual enlightenment, guiding devotees as a result of symbols to know deeper cosmic truths.

सर्वाशा-परि-पूरके परि-लसद्-देव्या पुरेश्या युतं

Even though the precise intention or significance of the variation may well vary depending on own or cultural interpretations, it may possibly commonly be understood as an extended invocation with the combined Vitality of Lalita Tripurasundari.

सर्वानन्द-मयेन मध्य-विलसच्छ्री-विनदुनाऽलङ्कृतम् ।

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥४॥

चतुराज्ञाकोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् ॥१२॥

षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी का जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।

Shodashi’s mantra assists devotees launch past grudges, discomfort, and negativity. By chanting this mantra, folks cultivate forgiveness and emotional release, promoting satisfaction and a chance to transfer ahead with grace and acceptance.

हार्दं शोकातिरेकं शमयतु ललिताघीश्वरी पाशहस्ता ॥५॥

She's also referred to as Tripura mainly because all her hymns and mantras have a few clusters of letters. Bhagwan Shiv is considered to generally be her consort.

website Philosophically, she symbolizes the spiritual journey from ignorance to enlightenment and is also associated with the supreme cosmic electrical power.

Cultural activities like people dances, audio performances, and plays can also be integral, serving as being a medium to impart traditional tales and values, Particularly towards the youthful generations.

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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